Old history of Crucifixion Punishment: सूली पर चढ़ाना प्राचीन काल में मौत की सजा देने का एक बर्बर तरीका था। यह दर्दनाक और क्रूर सजा थी, जिसमें पीड़ित को ज़िंदा ही सूली पर टांग दिया जाता था। यह सजा अपमानजनक भी मानी जाती थी, और इसका इस्तेमाल गुलामों, अपराधियों, और राजनीतिक विरोधियों को दंडित करने के लिए किया जाता था।
प्राचीन काल में सूली पर चढ़ाना, जलाकर मारना, और सिर काटना जैसी सजाएं मौत की सजा देने के सबसे आम तरीके हुआ करते थे। ये सजाएं न केवल आतंक फैलाने का एक जरिया थीं बल्कि लोगों के बीच एक तमाशे का रूप भी ले चुकी थीं।
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सूली एक अत्यधिक दर्दनाक प्रथा
सूली पर चढ़ाने की प्रथा अत्यधिक दर्दनाक और कष्टदायक होती थी जिसमें व्यक्ति को लंबे समय तक असहनीय पीड़ा सहनी पड़ती थी। यह सजा मानवता के खिलाफ एक अत्याचार के रूप में देखी जाती है और आधुनिक समाज में इसकी निंदा की जाती है। इतिहास के पन्नों में इन बर्बर सजाओं का वर्णन हमें यह याद दिलाता है कि मानवता कितनी दूर आ चुकी है और हमें न्याय और करुणा के मार्ग पर चलने की कितनी आवश्यकता है।
सूली की सजा: सबसे क्रूर मौत
प्राचीन समय में सूली पर चढ़ाना मौत की सजा देने के सबसे दर्दनाक और बर्बर तरीकों में से एक माना जाता था। यह एक ऐसी प्रक्रिया थी जिसमें मौत तत्काल नहीं बल्कि धीरे-धीरे और यातनापूर्ण ढंग से होती थी। जिस व्यक्ति को सूली पर चढ़ाया जाता था उसकी मौत कभी-कभी कई दिनों बाद होती थी, जिसमे दम घुटने, खून और पानी की कमी और शरीर के अंगों के कार्य करना बंद कर देने के कारण होता था।
ईसा मसीह को भी सूली लगी
सूली पर लटकाना केवल एक सजा नहीं थी बल्कि यह लोगों में आतंक पैदा करने और एक उदाहरण पेश करने का एक माध्यम भी था। इसकी क्रूरता और दर्दनाक प्रक्रिया ने इसे सबसे भयानक सजाओं में से एक बना दिया था। ईसा मसीह को भी सूली पर चढ़ाकर मारा गया था जो इस सजा की क्रूरता का सबसे प्रमुख उदाहरण है। उनके जन्म से कई साल पहले से ही यह प्रथा प्रचलित थी।
सूली पर चढ़ाने की उत्पत्ति
डॉक्टर सिलियर्स के हवाले से बीबीसी की एक रिपोर्ट में प्राचीन सभ्यताओं में मौत की सजा देने की एक बेहद क्रूर प्रथा का वर्णन किया गया है। सूली पर चढ़ाने की इस प्रथा की शुरुआत असीरिया और बेबीलोन में हुई थी जो आज के पश्चिम एशिया में स्थित थे। यह तरीका उस समय फारसी लोगों के बीच काफी प्रचलित था जहां वे लोगों को पेड़ों और खंभों पर सूली पर चढ़ाते थे।
सूली का डर और इसका अंत
प्राचीन काल में कई राजा-महाराजाओं ने इस क्रूर सजा का उपयोग करके लोगों में आतंक का संचार किया। सिकंदर और उसकी सेना द्वारा लेबनान के सोर शहर में लगभग 2000 लोगों को सूली पर लटकाए जाने की घटना इसका एक उदाहरण है।
सूली पर चढ़ाने की यह प्रथा कई सदियों तक चली जिसमें अनगिनत निर्दोषों को क्रूरता का शिकार बनना पड़ा। हालांकि इतिहास के पन्नों में एक उजला पल तब आया जब रोमन सम्राट कान्सटेंटाइन ने चौथी सदी ईस्वी में इस बर्बर सजा को खत्म करने का निर्णय लिया।
ध्यान देने योग्य बिंदु
- सूली पर चढ़ाने की सजा धार्मिक और राजनीतिक कारणों से भी इस्तेमाल की जाती थी।
- आज कई देशों में यह सजा गैरकानूनी है।
सूली पर चढ़ाने का इतिहास हमें मानवता के क्रूर इतिहास की याद दिलाता है। यह हमें मानव अधिकारों के महत्व और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा देता है।
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