Cheque Bounce Rule: जयपुर मेट्रो-द्वितीय की NI एक्ट केस के खास कोर्ट-4 ने एक चेक बाउंस केस को लेकर निर्णय देते हुए कहा है कि NI एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध साबित करने के लिए दस्तावेजी साक्ष्य का होना जरूरी है। इस मामले में परिवादी यह साबित करने में विफल रहा कि विवादित चेक आरोपी सुनीता ने उसे किसी लोन या विधिक दायित्व के लिए दिया था।

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परिवादी दस्तावेजी साक्ष्य नहीं दे पाया
न्यायालय ने कहा कि “यह साबित करने के लिए कि चेक किसी ऋण या अन्य दायित्व के पूर्ण या भागात उन्मोचन के लिए दिया गया था, दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करना आवश्यक है।” चूंकि परिवादी दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा इसलिए न्यायालय ने आरोपी सुनीता को संदेह लाभ में दोषमुक्त कर दिया।
चेक बाउंस मामला: परिवादी साबित करने में विफल
न्यायालय ने कहा कि परिवादी यह साबित करने में विफल रहा है कि आरोपी ने उसे किस विधिक दायित्व में 25 लाख रुपए का चेक दिया था। न्यायालय ने यह भी कहा कि एग्रीमेंट पर भी परिवादी या उसकी फर्म के हस्ताक्षर नहीं थे, इसलिए धारा 138 की कार्रवाई अवैध है।
यह आदेश अधिवक्ता दीपक चौहान की याचिका पर दिया गया। उन्होंने न्यायालय को बताया कि परिवादी ने यह साबित नहीं किया कि चेक किसी ऋण या अन्य दायित्व के पूर्ण या भागात उन्मोचन के लिए दिया गया था।
मामले को जान लें
परिवादी का कहना था कि आरोपी की फर्म, मैसर्स काईमैक्स पॉवर का काम दवाइयों की मार्केटिंग है। आरोपी ने परिवादी की फर्म को कनसाइनी एजेंट बताकर सिक्योरिटी के पेटे 25 लाख रुपए ले लिए। दोनों में विवाद हो जाने पर आरोपी ने परिवादी को 25 लाख रुपए का चेक धमाया।
किंतु ये चेक बैंक खाते में बैलेंस न होने से बाउंस हो गया। फिर परिवादी ने इस व्यक्ति पर धारा 138 के अंतर्गत कार्रवाई की।
मामले से मिले निष्कर्ष
- एनआईएक्ट धारा 138 के तहत अपराध साबित करने के लिए दस्तावेजी साक्ष्य जरूरी है।
- चेक किसी ऋण या अन्य दायित्व के लिए दिया गया था, यह साबित करने के लिए दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करना आवश्यक है।
यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एनआईएक्ट धारा 138 के तहत मामलों में दस्तावेजी साक्ष्य के महत्व को रेखांकित करता है।
टॉपिक: Cheque Bounce Rule, चेक बाउंस मामला
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