बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया कि अगर सास-ससुर बहू को खाना न बना पाने को लेकर उसके माता-पिता पर टिप्पणी करते हैं, तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत क्रुएल्टी (क्रूरता) नहीं मानी जाएगी। जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और एनआर बोरकर की बेंच ने इस निर्णय के साथ एक महिला की शिकायत पर दर्ज एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
महाराष्ट्र के सांगली जिले की एक महिला ने अपने पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। महिला ने आरोप लगाया कि उसे वैवाहिक घर से नवंबर 2020 में निकाल दिया गया था और उसके पति उसके साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करने में असमर्थ थे।
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छोटे-मोटे झगड़े और क्रूरता की परिभाषा
हाईकोर्ट ने इस मामले में कहा कि छोटे-मोटे झगड़े या ऐसी टिप्पणियां आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता नहीं मानी जा सकतीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 498ए के तहत अपराध साबित करने के लिए यह दिखाना जरूरी है कि महिला के साथ लगातार क्रूरता की गई हो।
अदालत का निर्णय
अदालत ने इस मामले में कहा कि वर्तमान मामले में याचिका कर्ताओं के खिलाफ लगाया गया एकमात्र आरोप है कि उन्होंने महिला को खाना नहीं बना पाने को लेकर टिप्पणी की थी। इस आरोप को क्रूरता के रूप में नहीं माना गया और इस आधार पर एफआईआर को रद्द कर दिया गया।
इस निर्णय के माध्यम से, बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आईपीसी की धारा 498ए का उद्देश्य गंभीर क्रूरता के मामलों को संबोधित करना है, न कि हर छोटे-मोटे झगड़े या टिप्पणी को। इस निर्णय से महिलाओं के प्रति क्रूरता के मामलों में एक स्पष्टता आई है, जिससे कानून का सही और उचित उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा।
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