हमारे समाज में डॉक्टरों का स्थान बेहद विशेष है। उन्हें जीवनदाता और धरती पर भगवान का दर्जा दिया जाता है, क्योंकि वे न सिर्फ जीवन बचाते हैं बल्कि कई बार मौत के मुँह से भी जीवन को खींच लाते हैं। इसी कारण से डॉक्टर बनना बहुत से लोगों का सपना होता है।
कौन थी भारत की पहली महिला डॉक्टर ?
भारत में पहली महिला डॉक्टर होने का गौरव आनंदीबाई जोशी को प्राप्त है। उनका जन्म 31 मार्च 1865 में पुणे में हुआ था। उनका जीवन संघर्ष और प्रेरणा से भरा हुआ था। उस समय लड़कियों को शिक्षा देना बहुत मुश्किल था। लेकिन, उनके एक शिक्षित व्यक्ति थे और उन्होंने अपनी बेटी को शिक्षा देने का फैसला किया। आनंदीबाई ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की।
वैवाहिक जीवन
आनंदीबाई की जीवन यात्रा आसान नहीं थी। 1874 में, जब वे सिर्फ 9 साल की थीं, उनकी शादी 19 वर्षीय गोपालराव जोशी से हुई। गोपालराव एक शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने आनंदीबाई को शिक्षा जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। आनंदीबाई मात्र 14 वर्ष की आयु में पहली बार माँ बनीं, लेकिन उनके बच्चे की मौत ने उन्हें गहरी पीड़ा दी। इसी पीड़ा ने उन्हें डॉक्टर बनने का संकल्प दिलाया।
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डॉक्टर बनने का सपना
आनंदीबाई बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहती थीं। उस समय, महिलाओं के लिए डॉक्टर बनना बहुत मुश्किल था। लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी शिक्षा जारी रखी।
1880 में, आनंदीबाई ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। उसके बाद, उन्होंने बॉम्बे में एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया। वे कॉलेज में प्रवेश लेने वाली पहली महिला थीं। 1883 में, आनंदीबाई ने अपनी मेडिकल की पढ़ाई शुरू करने के लिए इंग्लैंड जाने का फैसला किया। उस समय, भारत में महिलाओं के लिए मेडिकल कॉलेज नहीं थे।
आनंदीबाई ने इंग्लैंड में लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन फॉर वुमन में प्रवेश लिया। उन्होंने अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की और 1886 में डॉक्टर बन गईं।
भारत वापसी करके अपना सपना पूरा किया
1886 में भारत लौटने के बाद, आनंदीबाई को अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल में महिला वार्ड की चिकित्सा प्रभारी के तौर पर नियुक्त किया गया। दुर्भाग्यवश, उन्हें टीबी हो गई और वे महज 22 वर्ष की उम्र में ही इस दुनिया को छोड़ गईं। आनंदीबाई जोशी ने न केवल भारत में महिला शिक्षा और महिला स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई दिशाएँ तय कीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा भी बन गईं।
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