दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक विशेष मामले में सुनवाई की, जहां हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुंदन सिंह ने एक असाधारण याचिका दायर की थी। कुंदन, जो 14 साल से जेल में हैं, ने कहा कि वह 41 साल के हैं और उनकी पत्नी 38 साल की हैं। उन्होंने अदालत से संतान पैदा करने की अनुमति मांगी, क्योंकि उनके कोई बच्चे नहीं हैं।
कोर्ट का निर्णय
इस मामले में, दिल्ली हाई कोर्ट ने कुंदन सिंह को माता-पिता बनने का अधिकार स्वीकार किया और उन्हें चार सप्ताह की पैरोल दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार पूर्ण नहीं है, बल्कि परिस्थितियों पर निर्भर करता है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सिंह के माता-पिता की उम्र 70 वर्ष से अधिक है और उनके कोई अन्य बच्चे नहीं हैं। ऐसे में, अगर सिंह को पैरोल नहीं दी जाती है, तो उनके वंश की रक्षा नहीं हो पाएगी। इसलिए, उन्हें पैरोल देने का फ़ैसला लिया गया।
आदेश के शर्तें
कोर्ट ने कुंदन सिंह को पैरोल पर रिहा करते हुए कुछ शर्तें लगाई हैं। उन्हें 20 हजार रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के एक जमानती पर रिहा किया गया है। इसके अलावा, उन्हें उत्तराखंड के नैनीताल से बाहर न जाने और हर बुधवार को नैनीताल के काठगोदाम थाने में उपस्थिति दर्ज कराने का आदेश दिया गया है।
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मामले की महत्ता
यह निर्णय भारतीय न्यायिक प्रणाली में कैदियों के मौलिक अधिकारों और मानवीय मूल्यों के संबंध में एक महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करता है। यह दिखाता है कि कानून का पालन करते हुए भी मानवीय संवेदनाओं और मौलिक अधिकारों का सम्मान किया जा सकता है।
इस फैसले को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह फैसला सही है और इससे दोषियों के अधिकारों की रक्षा होगी। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि यह फैसला कानून व्यवस्था के लिए हानिकारक है।
इस फैसले से यह भी उम्मीद की जा सकती है कि इससे दोषियों के पुनर्वास में मदद मिलेगी। क्योंकि, संतान पैदा करना एक प्राकृतिक अधिकार है और इससे दोषियों को भी एक नई जिम्मेदारी और उद्देश्य मिलेगा।
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