Delhi High Court : दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत को “किराए पर कोख देने वाला देश” नहीं बनना चाहिए। हाई कोर्ट एक भारतीय मूल के दंपति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जो कनाडा में रहते हैं और सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पैदा करना चाहते थे।
दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सरोगेसी कानूनों का उद्देश्य महिलाओं के शोषण को रोकना है, विशेष रूप से उन महिलाओं का जो सरोगेसी के माध्यम से दूसरों के लिए बच्चे पैदा करती हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि कोई भी यह नहीं चाहता कि भारत “किराए पर कोख” वाला देश बन जाए, जहां महिलाओं को पैसे के लिए गर्भधारण करने के लिए मजबूर किया जाता है।
हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी कनाडा में रहने वाले एक भारतीय मूल के जोड़े की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याचिकाकर्ताओं ने सरोगेसी नियमों, 2022 के नियम 7 में बदलाव को चुनौती दी थी, जिसके तहत डोनर सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
किराए पर कोख देने वाली इंडस्ट्री नहीं बनाना चाहते
एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मिनी पुष्करणा की बेंच ने कहा कि सरोगेसी पर नियंत्रण लगाना आवश्यक था। यह टिप्पणी उन्होंने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत डोनर सरोगेसी पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
भारतीय उद्योग परिसंघ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि एक समय में भारत किराए पर कोख देने वाली इंडस्ट्री थी, जिसका आकलन 2.3 अरब डॉलर था। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने यह जानकर बताया कि वे भारतीय नागरिक हैं और केवल काम के सिलसिले में कनाडा में रह रहे हैं। इस पर जवाब में, बेंच ने कहा कि वे उसी देश में सरोगेसी सुविधा ले सकते हैं। उन्होंने एक विशेष कारण से भारत आ रहे हैं, क्योंकि यहां आर्थिक असमानता के कारण लोग कोख किराए पर ले सकते हैं। बेंच ने कहा कि यह नहीं चाहिए कि देश में कोख किराए पर लेने का एक ऐसा उद्योग बने जो अदालत को बढ़ावा देना चाहिए। विधायिका ने इस पर जरूरी फैसला किया है।
कोर्ट ने कहा, गोद लेने का विकल्प भी तो है
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि कनाडा में ही इस प्रक्रिया से गुजरने में क्या नुकसान है और जब वे वहां बस गए हैं तो वे सरोगेसी के लिए भारत क्यों आ रहे हैं? इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि उनका पूरा परिवार भारत में है और उनके पास वास्तविक मेडिकल समस्याएं हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि लोगों के पास बच्चा गोद लेने का विकल्प भी मौजूद है और कुछ अच्छे जोड़े उन बच्चों को गोद लेने के लिए आगे आते हैं, तो उन बच्चों का जीवन बदल जाएगा।
वकील ने इस बात पर सहमति दी कि गोद लेने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि गोद लेने के मामले में, जोड़े के साथ बच्चे का कोई जैविक संबंध नहीं होता। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह मानसिकता बहुत गलत है। भारत जैसे देश में गोद लेने को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। हाई कोर्ट के रुख को देखते हुए याचिकाकर्ताओं ने इस छूट के साथ अपनी याचिका वापस ले ली कि जरूरत पड़ी तो फिर से अदालत का रुख करेंगे।
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