नई दिल्ली, भारत: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अनोखे मामले में कड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने एक शख्स को कोर्ट में पेश होने के लिए नोटिस भेजा था। लेकिन, शख्स ने कोर्ट के नोटिस का जवाब देते हुए कहा कि “बेकार है आपका नोटिस, मैं नहीं आता।”
यह मामला ओडिशा के बालासोर जिले का है। उपेंद्र नाथ दलई नाम के शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में उन्होंने कहा था कि सत्संग के संस्थापक श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र को परमात्मा घोषित किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने दलई को नोटिस भेजकर कहा कि उन्हें याचिका में दिए गए दावों के समर्थन में सबूत पेश करने होंगे। लेकिन, दलई ने कोर्ट के नोटिस का जवाब देते हुए कहा कि “मैं सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं होऊंगा। आपका नोटिस बेकार है।”
क्या था मामला
यह घटना भारतीय न्यायिक प्रणाली के सामने एक अनूठी चुनौती पेश करती है। दलई का यह कदम भारत के सेक्युलर ढांचे के विरुद्ध था। उनकी याचिका में श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र को ‘परमात्मा’ के रूप में मान्यता देने की मांग की गई थी, जिसे कोर्ट ने स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया।
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कोर्ट का रुख
न्यायाधीशों सीटी रविकुमार और राजेश बिंदल की बेंच ने इस मामले में सख्त रुख अपनाया। उन्होंने दलई की भाषा और उनके द्वारा कोर्ट की अवमानना करने पर कड़ी आपत्ति जताई।
दलई के इस जवाब से सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ नाराज हो गई। खंडपीठ ने दलई को 13 फरवरी तक कोर्ट में पेश होने के लिए कहा है। अगर दलई कोर्ट में पेश नहीं होते हैं, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
अनुकूलचंद्र और उनका प्रभाव
श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र भारतीय संतों में एक प्रमुख नाम हैं। उनके द्वारा स्थापित ‘सत्संग’ आंदोलन ने अनेक लोगों के जीवन में प्रेरणा और आध्यात्मिक दिशा प्रदान की है। उनके अनुयायियों की बड़ी संख्या इस बात का प्रमाण है कि उनके विचार और शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं।
यह घटना न केवल भारतीय न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता और सेक्युलर चरित्र को दर्शाती है, बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि धार्मिक मामलों में कानून का उल्लंघन किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। इस फैसले से भारतीय न्यायपालिका की साख और मजबूत हुई है।
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