Farmers Protest 2024: किसान नेताओं के मुताबिक, इस बार किसान अपने आंदोलन के लिए पिछली बार से ज्यादा मजबूती के साथ दिल्ली कूच की तैयारी कर रहे हैं। अब तक 50 किसान और मजदूर संगठनों ने इस आंदोलन का समर्थन किया है।
26 महीने बाद देश में किसान आंदोलन की आग फिर से सुलग उठी है। सोमवार (12 फरवरी) को केंद्र सरकार से बातचीत बेनतीजा रहने के बाद प्रदर्शनकारी किसानों ने दिल्ली चलो का नारा दिया। इसके बाद से ही किसानों का दिल्ली बॉर्डर के आसपास प्रदर्शन जारी है।
किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने पत्रकारों से बातचीत करते समय कहा कि अगर हमारी मांगें स्वीकार नहीं की जाती तो हम दिल्ली जाएंगे। सरकार हमें दिल्ली जाने से रोक रही है, लेकिन हम किसान रुकेंगे नहीं। पंजाब किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के महासचिव पंढेर आंदोलन के अगुवा हैं।
26 महीने बाद फिर से प्रदर्शन को मजबूर क्यों हुए किसान?
किसान आंदोलन के संबंध में कोर कमेटी के सदस्य परमजीत सिंह के अनुसार, सरकार की वादाखिलाफी एक महत्वपूर्ण कारण है। 2021 में सरकार ने किसान नेताओं से कुछ वादे किए थे, जिसमें एमएसपी को सरकारी गारंटी में लाने और सभी किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमे हटाने की बात कही गई थी।
सिंह बताते हैं कि “तीन साल बाद भी किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमों को हटाया नहीं गया है और न यह कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को सरकारी गारंटी के दायरे में लाया गया है। अब किसान अगर प्रदर्शन नहीं करेंगे तो लोकसभा चुनाव के बाद उनकी मांग को कौन सुनेगा?”
दिसंबर 2021 में, तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद, किसानों ने अपने 13 महीने के लंबे आंदोलन को समाप्त कर दिया था। उस समय, केंद्र सरकार और किसानों के बीच तीन समझौते हुए थे। इन समझौतों में यह भी शामिल था कि पंजाब मॉडल के अनुसार सभी मृतक किसानों को राज्य सरकारें मुआवजा देंगी।
दोसरे समझौते के अनुसार, एमएसपी को लेकर एक कमेटी गठित की जाएगी, जिसमें किसान संगठन और संबंधित स्थानीय अधिकारियों को शामिल किया जाएगा। साथ ही, भारत सरकार राज्य सरकारों से अपील करेगी कि वे किसानों पर लगाए गए सभी मुकदमों को वापस लें।
सरकार और किसानों के बीच क्यों नहीं बन पा रही है बात?
सोमवार को चंडीगढ़ में कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने किसानों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक किया। इस बैठक में दोनों मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। बैठक करीब पाँच घंटे तक चली, लेकिन बातचीत सफल नहीं हुई।
किसान नेता परमजीत सिंह बताते हैं, “हमने सरकार से 4 मांगों को तुरंत मानने की मांग की, जिसमें पहली मांग है केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करवाना है।” आशीष आरोपी हैं जो 4 किसानों की हत्या के मामले में आरोपी हैं। सरकार ने इसे सुनते ही खारिज कर दिया है और इसे सुप्रीम कोर्ट का मामला बता दिया है, जो कि गलत है। सरकार की इच्छा हो तो आशीष की जमानत रद्द की जा सकती है।
परमजीत के अनुसार, दूसरी मांग थी कि सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य को सरकारी गारंटी में लाने की है, लेकिन सरकार ने इसे भी नहीं माना। सरकार ने कहा कि चुनाव के बाद इस पर विचार किया जाएगा।
तीसरी मांग थी कि सरकार किसानों की फसल को उसके लागत से 50 प्रतिशत ज्यादा दामों पर खरीदे, लेकिन सरकार ने इसे भी खारिज किया। सरकार ने कहा कि यह मांग जबरदस्ती थोपी गई है।
सरकार की चौथी मांग थी कि 2021 के मुकदमे को वापस लिया जाए, लेकिन किसानों ने मीटिंग छोड़ दी।
परमजीत सिंह ने एबीपी न्यूज़ के साथ बात करते हुए कहा, “अगर केस सरकार ने ही दर्ज किया था और फिर उसे वापस लेकर मूल मांगों को ही सरकार कुचलना चाहती है, तो फिर ऐसे समझौते का क्या होगा?
अब इन 4 डिमांड को विस्तार से समझिए
1. आशीष मिश्र टेनी का जमानत मामला- केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्रा को लखीमपुर खीरी में 4 किसानों की हत्या के मामले में आरोपी माना जा रहा है। यह मामला 3 अक्तूबर, 2021 को हुआ था।
इस मुकदमे की सुनवाई लखीमपुर के प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रामेन्द्र कुमार की कोर्ट में चल रही है। आशीष फिलहाल जमानत पर है, और किसान संगठनों का कहना है कि सरकार को उसकी जमानत रद्द करवानी चाहिए।
हालांकि, सरकार का कहना है कि आशीष को कानूनन सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है, इसलिए सरकार के बीच में इसके बारे में कोई प्रभाव नहीं हो सकता।
2. न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी गारंटी- न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के फसलों की कीमत होती है, जिसे सरकार निर्धारित करती है। यह कीमत वहाँ तक पहुंचती है जहाँ देश की जनता को पहुंचने वाले अनाज को पहले सरकार खरीदती है। एमएसपी सिस्टम को लागू करने का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी फसल के लायक दाम देना है।
किसान संगठनों का कहना है कि सरकार इसे सरकारी गारंटी में लाए और इसे लागू करे। किसान नेताओं के मुताबिक, अगर सरकार यह मांग मान लेती है तो फसल की कीमत को लेकर कई समस्याएं हल हो जाएंगी।
.3. फसल लागत से 50 प्रतिशत ज्यादा पर खरीदने की मांग- किसानों की यह मांग बहुत महत्वपूर्ण है। किसान प्रतिनिधियों का कहना है कि अगर फसल को उसकी लागत के 50 प्रतिशत के हिसाब से खरीदा जाएगा, तो किसानों की स्थिति में सुधार हो सकता है।
किसान संगठनों का दावा है कि सरकार आमदनी दोगुनी की बात करती है, लेकिन उसे बढ़ाने के लिए कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाती है। आय बढ़ाने के लिए फसल को लागत से 50 प्रतिशत ज्यादा की राशि पर खरीदने की व्यवस्था होनी चाहिए। इसे कृषि क्षेत्र में सी-2 फॉर्मूला भी कहा जाता है।
4. 2021 आंदोलन का मुकदमा वापस लेने की मांग- 2021 में 3 कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने प्रदर्शन किया था। उस समय हजारों किसानों पर प्रदर्शन का मुकदमा दायर हुआ था, लेकिन अभी तक अधिकांश किसानों पर से केस वापस नहीं लिया गया है।
किसान नेताओं का कहना है कि अधिकांश मुकदमे बीजेपी शासित राज्यों में हैं। इस परिस्थिति में, केंद्र सरकार इससे पल्ला नहीं झाड़ सकती है। यदि केंद्र सरकार पहल करेगी, तो मुकदमा एक दिन में ही वापस हो जाएगा।
किसानों को लेकर सरकार का क्या है रूख?
आंदोलन के दौरान केंद्र सरकार लगातार किसानों से संपर्क में रही है। यहाँ तक कहा जा रहा है कि जल्द ही किसान संगठनों और सरकार के बीच एक और दौर की बातचीत हो सकती है।
बुधवार को मीडिया से बात करते हुए कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा, “किसान संगठनों को यह समझने की आवश्यकता है कि जल्दबाजी में कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता है, जिसकी भविष्य में आलोचना हो।”
मुंडा ने आगे कहा, “हमें सभी पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए और इस पर चर्चा करनी चाहिए। किसानों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सामान्य जीवन बाधित न हो।” उन्होंने कहा कि केंद्र किसान यूनियनों के साथ रचनात्मक बातचीत जारी रखेगा। “हम समाधान खोजने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं।”
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