What is Self Marriage: आत्मसम्मान विवाह, जिसे सुयमरियाथाई विवाह भी कहा जाता है, एक अनूठा विवाह प्रारूप है जो दो लोगों को बिना किसी रीति-रिवाज का पालन किए शादी करने की अनुमति देता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसमें उन्होंने कहा है कि जीवन साथी चुनना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।
इस निर्णय के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने विवाह से पहले सार्वजनिक समारोह या घोषणा की आवश्यकता को खारिज कर दिया है।
यह भी पढ़ें:- ‘पिता बनना दोषी का मौलिक अधिकार’, क्या था मामला
आत्मसम्मान विवाह पर सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 29 अगस्त को एक ऐतिहासिक फैसले में तमिलनाडु में आत्मसम्मान विवाह या सुयमरियाथाई विवाह को वैध माना है। इस फैसले के तहत उल्लेखित है कि तमिलनाडु में दो वयस्क अपनी स्वेच्छा से एक दूसरे को जीवनसाथी चुन सकते हैं।
उन्हें शादी के लिए किसी सार्वजनिक समारोह या घोषणा की आवश्यकता नहीं होगी। वे अपनी पसंद के स्थान पर अपनी पसंद के तरीके से शादी कर सकते हैं। वकील परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच सुयमरियाथाई या आत्मसम्मान विवाह करा सकते हैं।
हिंदू विवाह अधिनियम में अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि जीवन साथी चुनना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। साथ ही शीर्ष अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 ए के तहत आत्मसम्मान विवाह या सुयमरियाथाई विवाह को वैध माना है।
कोर्ट ने आत्मसम्मान विवाह या सुयमरियाथाई विवाह को करने के लिए अब किसी भी सार्वजनिक समारोह की आवश्यकता को खारिज किया है। यह निर्णय हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 ए के तहत आजादी का परिचय कराता है और जीवन साथी का चयन करने में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को पुनः पुष्टि करता है।
आत्मसम्मान विवाह जाने
आत्मसम्मान विवाह एक अनूठा विवाह प्रारूप है जो दो लोगों को बिना किसी रीति-रिवाज का पालन किए शादी करने की अनुमति देता है। यह उन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प है जो सामाजिक दबाव या पारिवारिक विरोध के कारण अपनी पसंद से शादी नहीं कर पा रहे हैं।
इस विवाह प्रारूप में कोई धार्मिक या सामाजिक रीति-रिवाज का पालन नहीं होता है। ऐसे लोगों को अपनी पसंद से शादी करने की स्वतंत्रता देता है। यह विवाह कानूनी रूप से मान्य है और इसे पंजीकृत कराना भी जरूरी है। विवाह प्रारोप सरल और बिना किसी झंझट के होता है।
आत्मसम्मान विवाह की शुरुआत
तमिलनाडु के समाज सुधारक और नेता, पेरियार ई.वी. रामास्वामी, ने साल 1925 में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया जब उन्होंने आत्मसम्मान आंदोलन की शुरुआत की। उनका उद्देश्य था जात-पात के भेदभाव को समाप्त करना और समाज में निम्न जाति के लोगों को सम्मान प्राप्त कराना।
पेरियार ई.वी. रामास्वामी का आंदोलन जनमानस को जागरूक करने का अभूतपूर्व प्रयास था। उन्होंने समाज में न्याय और समानता की मांग की और निम्न वर्ग के लोगों के अधिकारों की रक्षा की। उनके आंदोलन ने समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया और जाति-पात के खिलाफ सामाजिक जागरूकता को बढ़ाया।
विवाह पर कुछ महत्वपूर्ण बातें
- आत्मसम्मान आंदोलन का प्रभाव केवल तमिलनाडु तक ही सीमित नहीं रहा।
- यह आंदोलन पूरे भारत में सामाजिक सुधार आंदोलनों को प्रेरित करता रहा है।
- आत्मसम्मान आंदोलन के विचारों को आज भी कई राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन अपनाते हैं।
यह निर्णय सामाजिक सुधार के माध्यम से व्यक्तिगत स्वतंत्रता को समर्थन करता है और एक समृद्ध समाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय सामाजिक रूप से समानता और न्याय को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा।
टॉपिक: Self Marriage, आत्मसम्मान विवाह,
अन्य खबरें भी देखें:
- डायबिटीज: जानिए क्या है यह बीमारी? इन संकेतों को न करें अनदेखा
- दवाओं का कॉम्बो पैक! जानिए इस पहाड़ी फल के अद्भुत फायदे
- दुश्मन के लिए भी रखते थे तलवार! महाराणा प्रताप का अद्भुत किस्सा
- Pre-Wedding Shoot के लिए ये है सबसे बेहतरीन जगह, अपनी शादी को बनाएं यादगार
- भारत की पहली महिला डॉक्टर कौन थी ? जानिए उनकी कहानी